भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के जाने-माने प्रोडक्शन डिजाइनर वासिक खान अब हमारे बीच नहीं रहे। उनके निधन की खबर से बॉलीवुड और उनके चाहनेवालों के बीच शोक की लहर दौड़ गई है। यह जानकारी फिल्म निर्देशक अश्विनी चौधरी ने सोशल मीडिया के जरिए साझा की।
दिल्ली से मुंबई तक का सफर
दिल्ली में जन्मे और पले-बढ़े वासिक खान का कला के प्रति झुकाव शुरू से ही स्पष्ट था। उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी से 1996 में फाइन आर्ट्स की पढ़ाई पूरी की। इंजीनियर पिता की राह न चुनकर उन्होंने कला और सिनेमा में अपना करियर बनाया। कॉलेज के दिनों में उनकी मुलाकात प्रसिद्ध आर्ट डायरेक्टर समीर चंदा से हुई, जिन्होंने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें गाइड किया।
करियर की शुरुआत और शुरुआती चुनौतियां
मुंबई आने के बाद वासिक ने अपने करियर की शुरुआत कमालिस्तान स्टूडियो में बैकड्रॉप पेंटर के रूप में की। धीरे-धीरे उन्होंने खुद को साबित किया और समीर चंदा के साथ मिलकर मणिरत्नम की तमिल फिल्म ‘इरुवार’ (1997) और श्याम बेनेगल की ‘हरी-भरी’ (2000) जैसी फिल्मों में काम किया, जो उनके करियर में मील का पत्थर साबित हुईं।
अनुराग कश्यप के साथ एक खास जुड़ाव
वासिक खान को निर्देशक अनुराग कश्यप की फिल्मों में उनके अनूठे प्रोडक्शन डिजाइन के लिए खास तौर पर जाना जाता है। ‘ब्लैक फ्राइडे’ (2004), ‘नो स्मोकिंग’ (2007), ‘गुलाल’ (2009), ‘दैट गर्ल इन येलो बूट्स’ (2011) और विशेष रूप से ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ (2012) में उनका काम इतना वास्तविक और जीवंत था कि दर्शक कहानी में पूरी तरह डूब गए। ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में उनके रचनात्मक दृष्टिकोण ने फिल्म को एक विशेष पहचान दिलाई।
व्यावसायिक सिनेमा में भी दिखाई प्रतिभा
वासिक खान ने खुद को सिर्फ आर्ट फिल्मों तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने व्यावसायिक फिल्मों में भी शानदार काम किया, जैसे ‘वॉन्टेड’ (2009) और ‘दबंग’ (2010)। ‘दबंग’ के लिए उन्होंने 100 से ज्यादा स्केच बनाए थे, जो हर लोकेशन को बारीकी से दर्शाते थे। उनकी डिजाइनिंग ने फिल्मों को एक अलग ही ऊंचाई दी।
भव्यता और यथार्थ का खूबसूरत मेल
संजय लीला भंसाली की ‘राम-लीला’ (2013) और ‘रांझणा’ (2013) में वासिक के सेट्स ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने ‘टैक्सी नंबर 9211’ (2006), ‘तेरे बिन लादेन’ (2010), और ‘तनु वेड्स मनु’ (2011) जैसी फिल्मों में भी गहराई से काम किया। ‘तेरे बिन लादेन’ के लिए उन्होंने मुंबई के फिल्म सिटी में एबटाबाद जैसे पाकिस्तानी शहर को फिर से रचना किया था। वहीं ‘लम्हा’ के लिए कश्मीर से दो ट्रक चिनार के पत्ते मंगवाना उनके समर्पण को दर्शाता है।
एक कलाकार जिसे हमेशा याद किया जाएगा
वासिक खान की कला, सोच और संवेदनशीलता ने उन्हें फिल्म इंडस्ट्री का एक अनमोल रत्न बना दिया। उनकी विरासत सिर्फ सेट्स तक सीमित नहीं, बल्कि हर उस कहानी में जिंदा है जिसे उन्होंने सजीव बना दिया। उनके असमय निधन से बॉलीवुड ने एक बेहद प्रतिभाशाली और सच्चे कलाकार को खो दिया है।
श्रद्धांजलि वासिक खान को – उनकी रचनाएं हमेशा जीवित रहेंगी।